इस रात की सुबह नहीं...

भोर का तारा आज कौन देखता है!
किस्से-कहानियों में भी अब तो शुक्र अस्त हो चुका है, फिर भी लोग खुशहाल हैं।
ये क्षणिक अहसास तो नहीं? उस रात मेरा मन इसी उधेड़-बुन में लगा रहा
... रात आंखों में कट गई।
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