बड़े इरादों के प्रोजेक्ट

शहर के स्टूडेंट्ïस लगे हैं विकास की नई संभावनाओं की खोज में
जयपुर। क्या आप जानते हैं शास्त्री नगर स्थित ट्रेफिक पार्क किसी कॉलेज स्टूडेंट के प्रोजेक्ट के आधार पर विकसित किया गया है। जी हां, यह राज्य सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की ओर से हायर स्टडीज के स्टूडेंट्ïस को उनके रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए दिए जाने वाले प्रोत्साहन का ही नतीजा है। डिपार्टमेंट हर वर्ष विभिन्न कॉलेजों व संस्थाओं में अध्ययनरत स्टूडेंट्ïस के प्रोजेक्ट्ïस क ो ग्रांट प्रदान करता है और उन प्रोजेक्ट के महत्व के आधार पर उसके फ्यूचर आस्पेक्ट पर भी काम किया जाता है। इस बार भी डिपार्टमेंट ने शहर से 6 स्टूडेंट्ïस के प्रोजेक्ट्ïस को प्रोत्साहन व ग्रांट के लिए चुना है। मेडिकल, बायोटेक्नोलॉजी, बॉटनी, टैक्सटाइल व एन्वायर्नमेंटल स्टडी में अध्ययनरत ये स्टूडेंंट्ïस अपने दम पर वर्तमान परिस्थितियों को बदलना चाहते हैं। आइए जानते हैं उनके इन प्रोजेक्ट्ïस और उद्देश्यों के बारे में।
ये हैं प्रोजेक्ट
इलाज हो विदाउट साइड इफेक्ट
बायोटेक्नोलॉजी के स्टूडेंट अविनाश मारवाल अपने रिसर्च प्रोजेक्ट के माध्यम से त्वचा रोग फैलाने वाले कवकों (डर्मेटोफाइट्ïस) पर विभिन्न पादप आसव (प्लांट एक्स्ट्रेक्ट) के प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं। मारवाल का ये रिसर्च त्वचा रोगों के लिए प्रचलित एलोपैथी दवाओं के साइड इफेक्ट से बचते हुए सही उपचार की ओर एक अच्छा कदम है। इसमें विभिन्न त्वचा रोगों में पादप आसवों का प्रयोग कर बिना साइड इफेक्ट के उपचार का मार्ग प्रशस्त होता है। जेईसीआसी कैम्पस के महात्मा गांधी इंस्टीट्ïयूट ऑफ अप्लाइड साइंसेज में अविनाश को इस प्रोजेक्ट में गाइड कर रही अणिमा शर्मा कहती हैं कि पादव रस व आसवों का कोई दुष्प्रभाव मनुष्यों पर नहीं होता और इस रिसर्च में इनका इस्तेमाल उपचार के रूप में किया जाना ही महत्वपूर्ण है।
पर्यावरण बचाने की पहल
जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी में बायोटेक्नोलॉजी की स्टूडेंट रिद्धि के. सेम ने दूषित जल से सिंचिंत फसलों के इस्तेमाल से मनुष्य पर पडऩे वाले दुष्प्रभावों को ध्यान में रखकर अपना रिसर्च प्रोजेक्ट तैयार किया है। डॉ. दिव्या श्रीवास्तव के नेतृत्व में रिद्धि ऐसे उन पौधों की एब्जॉर्ब करने की क्षमता बढ़ाने पर काम कर रही हैं, जो पानी से हैवी मैटल्स व टॉक्सिक्स को सोखते हैं। डॉ. दिव्या बताती हैं कि शहर के अमानीशाह नाले व इंडस्ट्रियल एरिया में पानी में बहाए जाने वाले हैवी मैटल्स व डिस्चार्ज टॉक्सिक्स का इस्तेमाल सिंचाई में भी होता है। ऐसे में ये खतरनाक तत्व फल व सब्जियों के जरिए हमारे शरीर तक पहुंच जाते हैं। इस रिसर्च में ऐसे पौधे जो इन मैटल्स व टॉक्सिक्स को एब्जॉर्ब कर सकें, को तलाश कर उनकी तत्वों को सोखने की क्षमता को बढ़ाना है। क्योंकि एक क्षमता के बाद इन पौधों की एब्जॉर्ब करने की क्षमता खत्म हो जाती है। रिसर्च में जमीन से ऐसे बैक्टीरिया को खोजा जा रहा है, जो इन पौधों की एब्जॉर्ब क्षमता में इजाफा करेंगे।
डोमेस्टिक टैक्सटाइल मार्केट को नया आयाम
जयपुर की ट्रेडिशनल हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग से तो सभी वाकिफ हैं, लेकिन अब डोमेस्टिक टैक्सटाइल मार्केट में इनोवेटिव क्वालिटी प्रोडक्ट चाहिए। आईसीजी की एमएससी होम साइंस की स्टूडेंट आरती शर्मा ने जेपनीज मोटिफ्स का इस्तेमाल करने की सोची। आरती ने डोमेस्टिक मार्केट में नए डिजाइन व ट्रेड की संभावनाओं पर काम किया। इस टैक्सटाइल प्रोजेक्ट से इंडस्ट्री को किफायती व क्वालिटी के साथ नए प्रयोगात्मक प्रोडक्ट की संभावनाएं हैं। आरती के अनुसार भले ही प्रदेश में सांगानेरी अथवा हैंड ब्लाक प्रिंटिंग का बड़ा मार्केट हो, लेकिन जेपेनीज मोटिफ्स के साथ स्क्रीन प्रिंटिंग वाला ये प्रोडक्ट भी सभी पसंद करेंगे।
हैपेटाइटिस-ई और प्रेग्नेंसी
एसएमएस मेडिकल कॉलेज के डिपार्टमेंट ऑफ गैस्ट्रोएन्ट्रोलॉजी की स्टूडेंट निधि सिंह हैपेटाइटिस-ई जो दूषित जल से फैलता है, पर अपना रिसर्च कर रही हैं। विभागाध्यक्ष डॉ.रमेश रूपराय के निर्देशन में निधि सामान्य अवस्था के मुकाबले प्रेग्नेंसी के दौरान हैपेटाइटिस-ई के संक्रमण की अधिक मृत्युदर पर शोध कर रही हैं। वे कहती हैं कि ऐसी स्थिति में प्रेग्नेंट महिला के लीवर फैल्योर की आशंका बढ़ जाती हैं और वे इस बात को गहराई से जानना व हल ढूंढना चाहती हैं कि ऐसा क्यों होता है। क्या यह वायरस के जीन अथवा प्रेग्नेंट महिला के शारीरिक बदलाव का नतीजा होता है? इस रिसर्च के बाद जो निष्कर्ष निकलेंगे उनके जरिए हैपेटाइटिस के गर्भवती महिलाओं पर असर व उपचार में मदद मिलेगी।
जान लेवा बन रहा पानी
पोद्दार इंटरनेशनल कॉलेज में एन्वायर्नमेंटल स्टडीज की स्टूडेंट सीता शर्मा अपनी गाइड डॉ.हिमानी तिवाड़ी के निर्देशन में सांगानेर में रंगाई-छपाई उद्योगों से दूषित पानी का बायोकेमिकल एनालिसिस एवं मनुष्य पर पडऩे वाले दुष्प्रभावों पर रिसर्च कर रही हैं। यहां के प्रदूषित पानी से आम आदमी के स्वास्थ्य पर पडऩे वाले असर को जानने के लिए वे यहां विभिन्न स्थानों से लिए पानी नमूनों का प्रयोग चूहों पर कर रही हैं। रिसर्च के दौरान चूहों पर प्रदूषित पानी से पडऩे वाले असर को वे अध्ययन का आधार बनाएंगी। सीमा कहती हैं कि पानी में मिले उन पदार्र्थों का भी अध्ययन कर रही हैं, जो मनुष्य के लिए अधिक खतरनाक है।
फ्लोराइड से बचाव की जुगत
ड्रिंकिंग वाटर में 1.5 पीपीएम फ्लोराइड की मात्रा का मानक सही है, लेकिन जो पानी हम पी रहे हैं उसमें ये संख्या 3 से 10 पीपीएम तक पहुंच गई है, जो कि क्षेत्र विशेष पर निर्भर है। जिसका दुष्प्रभाव कुछ ही वर्षों में हमारे शरीर पर साफ दिखाई देने लगता है। हड्डियां कमजोर पडऩे लगती हैं, व्यक्ति पर 40 की उम्र में ही 60 जैसा असर दिखने लगता है। फ्लोराइड का असर दांतों पर ही नहीं पूरे शरीर पर पड़ता है। राजस्थान यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ बॉटनी के प्रोफेसर केपी शर्मा के निर्देशन में दीपाली शर्मा इसी समस्या का समाधान ढूढने में लगी हैं। रिसर्च में मनुष्य शरीर द्वारा फ्लोराइड ग्रहण करने के बाद फ्लोराइड पर नियंत्रण व इसके साइड इफेक्ट्ïस से बचने के उपायों को तलाश रही हैं। जयपुर के आसपास के क्षेत्र में फ्लोराइड की समस्या विकट रूप ले चुकी है।
डिपार्टमेंट की ओर से स्टूडेंट्ïस का चयन उनके प्रोजेक्ट्ïस के आधार पर किया जाता है। साइंस एंड टेक्नोलॉजी से जुड़े इन प्रोजेक्ट्ïस पर विषय विशेषज्ञ अपनी राय देते हैं और इनकी उपादेयता पर भी टिप्पणी करते हैं। इस आधार पर चयनित स्टूडेंट्ïस को पन्द्रह हजार रुपए तक की ग्रांट भी दी जाती है। इनमें से बेहतरीन रिजल्ट को उसकी महत्ता व फ्यूचर आस्पेक्ट्ïस के आधार पर डवलप भी किया जाता है, ट्रेफिक पार्क इसी का उदाहरण है।- डॉ. अनिता गिल, प्रोजेक्ट डायरेक्टर, डीएसटी, राजस्थान सरकार

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