जयपुर। आमेर के राजा बिशनसिंह और रानी राठोडी के बेटे सवाई जयसिंह ने 13 साल की उम्र में 25 जनवरी सन् 1700 ई. को राजसिंहासन संभाल लिया था। साहित्यनुरागी, कलापारखी इस राजा ने 18 नवम्बर 1727 को जयपुर की नींव रखी थी। अपनी तरह के इस अनूठे शहर का तब से अपनी बसावट और नगर नियोजन के मामले में कोई शानी नहीं है। इसी महान शासक की 325 वीं जयन्ती शनिवार(3 नवम्बर 2012) पिंकसिटी में मनाई जा रही है।
स्टेच्यू सर्किल पर सुबह 7.00 बजे आयोजित होने वाले पुष्पांजली कार्यक्रम में जयपुर शहर के सभी जनप्रतिनिधि, जयपुर नगर निगम के पार्षदगण एवं गणमान्य नागरिक पुष्पान्जली अर्पित करेंगे। इस अवसर पर कलाकारों की संगीत प्रस्तुतियां भी होंगी।
महाराज सवाई जय सिंह महान ज्यार्तिविद, कुशल प्रशासक और महान योद्वा होने के साथ-साथ अन्तरिक्ष विज्ञान से बहुत प्रभावित भी थे। उन्होंने ग्रह-नक्षत्रों के अध्ययन के लिए 5 वैधशालाओं का निर्माण भी करवाया। दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, बनारस और मथुरा में आज भी यह जंतर-मंतर के नाम से दुनियाभर के पर्यटकों के लिए आकर्षक का विषय हैं। उनके द्वारा निर्मित इन वैधशालाओं में जयपुर की वैधशाला (जन्तर-मन्तर) चूने और पत्थर से बनी विश्व की सबसे बड़ी सूक्ष्म गणना के हिसाब से अत्याधुनिक पंचाग निर्माण की दिशा में एक उल्लेखनीय मील का पत्थर है।
स्टेच्यू सर्किल पर सुबह 7.00 बजे आयोजित होने वाले पुष्पांजली कार्यक्रम में जयपुर शहर के सभी जनप्रतिनिधि, जयपुर नगर निगम के पार्षदगण एवं गणमान्य नागरिक पुष्पान्जली अर्पित करेंगे। इस अवसर पर कलाकारों की संगीत प्रस्तुतियां भी होंगी।
महाराज सवाई जय सिंह महान ज्यार्तिविद, कुशल प्रशासक और महान योद्वा होने के साथ-साथ अन्तरिक्ष विज्ञान से बहुत प्रभावित भी थे। उन्होंने ग्रह-नक्षत्रों के अध्ययन के लिए 5 वैधशालाओं का निर्माण भी करवाया। दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, बनारस और मथुरा में आज भी यह जंतर-मंतर के नाम से दुनियाभर के पर्यटकों के लिए आकर्षक का विषय हैं। उनके द्वारा निर्मित इन वैधशालाओं में जयपुर की वैधशाला (जन्तर-मन्तर) चूने और पत्थर से बनी विश्व की सबसे बड़ी सूक्ष्म गणना के हिसाब से अत्याधुनिक पंचाग निर्माण की दिशा में एक उल्लेखनीय मील का पत्थर है।