बच्चे को बुखार हो तो घबराएं नहीं, क्या करें ? क्या न करें ? यहां पढ़ें

राजस्थान ही नहीं पूरे उत्तरी भारत में इन दिनों मौसमी बीमारियों ने कोहराम मचा रखा है. खासतौर पर डेंगू, मलेरिया, वायरल और स्वाइन फ्लू ने स्वास्थ्य विभाग की नींद उड़ा दी है. आखिर इन बीमारियों पर काबू पाएं तो कैसे? सबसे बड़ी बात है कि मौसमी बदलाव से तो कभी मच्छरों के काटने के बार आने वाले हर बुखार के साथ ही लोगों में इन जानलेवा बीमारियों की आशंका घर कर जाती है और वहीं से पेचिदगी बढ़ना शुरू हो जाती है. इन दिनों जयपुर में ऐसे खूब मामले सामने आ रहे हैं.


चिकित्सकों की माने तो बुखार में कोई भी गोली खाने की बजाय बुखार की पहचान कर सही इलाज हो तो किसी भी बुखार से आसानी से निपटा जा सकता है. लेकिन बुखार को नजर अंदाज करने से बात अक्सर बिगड़ जाती है.

जानिए, आखिर क्या है बुखार?
एक्सपर्ट के अनुसार जब हमारे शरीर पर कोई बैक्टीरिया या वायरस हमला करता है तो शरीर खुद ही उसे मारने की कोशिश करता है. इसी मकसद से हमें बुख्रार हाेता है और शरीर का तापमान ( सामान्य 98.3 डिग्री फॉरनहाइट से ज्यादा ) बढ़ाता है यानी बुखार हो जाता है. हालांकि कई बार बुखार थकान या मौसम बदलने आदि की वजह से होता है. ऐसे में 100 डिग्री तक बुखार में किसी दवा आदि की जरूरत नहीं होती. लेकिन बुखार इसी रेंज में 4-5 या ज्यादा दिन तक लगातार बना रहे या ज्यादा हो जाए तो इलाज की जरूरत होती है. कई बार बुखार 104-105 डिग्री फॉरनहाइट तक भी पहुंच जाता है.

102 डिग्री बुखार हो ताे जाएं डॉक्टर के पास:


बुखार अगर 102 डिग्री तक है और डेंगू के लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं तो 24 घंटे तक इंतजार करे लेकिन इससे भी अधिक हो जाए, उलटी , दस्त , सिर , आंखों , बदन या जोड़ों में दर्द जैसे लक्षणों में से कोई भी लक्षण हो, तो तुरंत डॉक्टर के पास चला जाना चाहिए.

बुखार 102 डिग्री होतो घबराएं नहीं, ये 5 उपाय करें:

1. बुखार अगर 102 डिग्री तक है और कोई और खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं. मरीज के माथे पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें और बुखार उतरने तक पट्टियां रखना जारी रखें. जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए माथे के साथ शरीर पर भी पट्टियां रखी जा सकती हैं. या गिले कपड़ें से शरीर को पौंछा जा सकता है.
2. बुखार नहीं उतरे तो मरीज को हर छह घंटे में पैरासिटामॉल (Paracetamol) की एक गोली दे सकते हैं. इसकी खुराक शरीर के वजन के अनुसार होती है. सामान्य आदमी के लिए 500 एमजी खुराक सही है लेकिन यदि बात बच्चों की होतो इसमें थोड़ी एतिहात बरतें. गोली डॉक्टर से पूछे बिना न दें. वैसे 10 एमजी प्रति किलो वजन के अनुसार दवा दे सकते हैं.
3. बुखार के बाद इलाज शुरू हो या घर पर ही देखभाल कर रहे हों घर और मरीज के आसपास साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखें. मरीज को वायरल है, तो अन्य सदस्यों को उससे थोड़ी दूरी बनाए रखें. ध्यान रहे उसके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें के इस्तेमाल से बचें.
4. मरीज छींकने से पहले नाक और मुंह पर रुमाल रखें. इससे वायरल होने पर दूसरों में फैलेगा नहीं.
5. मरीज को पूरा आराम करने दें , खासकर तेज बुखार में. आराम भी बुखार में इलाज का काम करता है.

कब जानलेवा बन जाता है बुखार?

सभी बुखार जानलेवा या बहुत खतरनाक नहीं होते , लेकिन अगर डेंगू में हैमरेजिक बुखार या डेंगू शॉक सिंड्रोम हो जाए, मलेरिया दिमाग को चढ़ जाए, टायफायड का सही इलाज न हो , प्रेग्नेंसी में वायरल हेपटाइटिस (पीलिया वाला बुखार) या मेंनिंजाइटिस हो जाए तो खतरनाक और जानलेवा  साबित हो सकता है.

कौनसे-कौनसे बुखार?

1. वायरल / फ्लू- किसी भी वायरस से होने वाला बुखार वायरल कहलाता है.
कैसे फैलता है- आमतौर पर इन्फेक्शन वाले शख्स और उसके कॉन्टैक्ट में आई चीजों जैसे फोन , हैंडल , टॉवल आदि छूने या इस्तेमाल करने से फैलता है.
कितने दिन रहता है- 3 से 5 दिनों तक.
लक्षण - खांसी , नाक बहना या नाक बंद होना , सिर दर्द , जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द , थकावट , गला खराब , आंखों का लाल होना आदि.
टेस्ट- 95 फीसदी मामलों में किसी टेस्ट की जरूरत नहीं होती. सीबीसी यानी कंप्लीट ब्लड काउंट. बुखार कम / खत्म नहीं होता तो डॉक्टर इस टेस्ट की मदद से जांचते हैं कि ब्लड में कोई इन्फेक्शन तो नहीं है. सीबीसी कम होंगे तो वायरल होगा और बढ़े हुए होंगे तो बैक्टीरियल फीवर होगा. सीबीसी से स्थिति साफ न हो या किसी खास वायरस का खतरा नजर आता है तो डॉक्टर वायरल एंटिजन टेस्ट ( वीएटी ) या पॉलीमरेज चेन रिएक्शन टेस्ट ( पीसीआर ) कराने की सलाह देते हैं.

इलाज- तापमान 102 डिग्री तक रहता है तो हर 6 घंटे में पैरासिटामोल की 1 गोली मरीज को दे सकते हैं. बच्चों को हर चार घंटे में दवा दे सकते हैं. बच्चों को 10 मिली प्रति किलो वजन के अनुसार पैरासिटामोल सिरप दे सकते हैं. दो - तीन दिन तक बुखार ठीक न हो तो डॉक्टर के पास जाएं.

2. टायफायड - इसे एंट्रिक फीवर और मियादी बुखार भी कहते हैं. यह सैल्मोनेला बैक्टीरिया से होता है , जिससे आंत में जख्म ( अल्सर ) हो जाता है , जो बुखार की वजह बनता है. यह बुखार आमतौर पर धीरे - धीरे करके बढ़ता है। पहले दिन कम , फिर थोड़ा तेज और धीरे - धीरे बढ़ता जाता है.
कैसे फैलता है - टायफायड खराब पानी से फैलता है. टायफायड वैक्सीन लगी होने के बावजूद यह बुखार हो सकता है , क्योंकि यह वैक्सीन 65 फीसदी ही सुरक्षा देती है.
कितने दिन रहता है- 3-4 हफ्ते ( अगर इलाज न हो तो यह लंबा खिंच जाता है )
लक्षण - तेज बुखार , सिर दर्द , बदन दर्द , कमजोरी , उलटी , जी मितलाना , दस्त , कभी - कभी शौच में खून.
टेस्ट- ब्लड कल्चर. कभी - कभी विडाल और टायफिडॉट टेस्ट भी कराते हैं.
इलाज - इसमें एंटी - बायोटिक दवा आमतौर पर दो हफ्ते के लिए दी जाती है. कई बार दवा देने के बाद भी बुखार उतरने में 4-5 दिन लग सकते हैं , इसलिए परेशान न हों. हाथ बिल्कुल साफ रखें और पानी साफ और उबालकर पिएं.
3. मलेरिया- यह ' प्लाज्मोडियम ' नाम के पैरासाइट से होता है , जो मच्छर इंसानों में फैलाते हैं. माना जाता है कि मलेरिया में एक दिन छोड़कर बुखार आता है , लेकिन अब धीरे - धीरे बदलाव देखने में आ रहा है और कई मामलों में बुखार लगातार भी बना रहता है.
कैसे फैलता है - मलेरिया मादा ' एनोफिलीज ' मच्छर के काटने से होता है , जोकि गंदे पानी में पनपते हैं। ये मच्छर आमतौर पर दिन ढलने के बाद काटते हैं.
कब तक रहता है - 1-2 हफ्ते ( इलाज के बिना यह लंबा खिंच जाता है )
लक्षण - रह - रहकर ( कभी - कभी लगातार भी ) ठंड के साथ तेज बुखार , सिर दर्द , कंपकंपी महसूस होना , शरीर दर्द , उलटी , जी मितलाना , कमजोरी आदि। कभी - कभी मरीज बेहोश भी हो जाता है.
टेस्ट - ब्लड स्मेयर टेस्ट और मलेरिया एंटीजन। ब्लड स्मेयर टेस्ट चढ़े बुखार में किया जाता है.
इलाज - इसमें क्लोरोक्विन जैसी एंटी - मलेरियल दवा दी जाती है। इन दवाओं के साइड - इफेक्ट्स हो सकते हैं , इसलिए इन्हें डॉक्टर की सलाह के बिना न लें.

4. डेंगू - डेंगू 3 तरह का होता है : 1. क्लासिकल ( साधारण ) डेंगू बुखार , 2. डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF), 3. डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS)
कैसे फैलता है - डेंगू मादा एडीज इजिप्टी मच्छर के काटने से होता है। इन मच्छरों के शरीर पर चीते जैसी धारियां होती हैं और ये बहुत ऊंचाई तक नहीं उड़ पाते। ये मच्छर दिन में , खासकर सुबह काटते हैं.
कितने दिन तक रहता है - 5 से 10 दिन तक.
लक्षण - ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार चढ़ना , तेज सिरदर्द , आंखों के पीछे दर्द , कमजोरी , उलटी , पेट दर्द , चक्कर आना. डेंगू हैमरेजिक बुखार में इन लक्षणों के साथ नाक और मसूढ़ों से खून आना , शौच या उलटी में खून आना या स्किन पर गहरे नीले - काले रंग के चिकत्ते जैसे लक्षण हो सकते हैं. डेंगू शॉक सिंड्रोम में इन लक्षणों के साथ - साथ कुछ और लक्षण भी दिखते हैं जैसे कि मरीज धीरे - धीरे होश खोने लगता है , उसका बीपी एकदम कम हो जाता है और तेज बुखार के बावजूद स्किन ठंडी लगती है.
टेस्ट - एंटीजन ब्लड टेस्ट ( एनएस 1) और डेंगू सिरॉलजी. एनएस 1 पहले दिन ही पॉजिटिव आ जाता है लेकिन धीरे - धीरे पॉजिविटी कम होने लगती है. इसलिए बुखार होने के 4-5 दिन बाद टेस्ट कराते हैं तो एंटीबॉडी टेस्ट ( डेंगू सिरॉलजी ) कराना बेहतर है.
इलाज - साधारण डेंगू बुखार का इलाज घर पर ही हो सकता है. मरीज को पूरा आराम करने दें. आराम दवा का काम करता है. उसे हर छह घंटे में पैरासिटामोल दें और बार - बार खूब सारा पानी और तरल चीजें ( नीबू पानी , छाछ , नारियल पानी आदि ) पिलाएं , ताकि ब्लड गाढ़ा न हो और जमे नहीं.
- मरीज में अगर जटिल तरह के डेंगू यानी DSS या DHF का एक भी लक्षण दिखाई दे तो उसे जल्दी - से - जल्दी डॉक्टर के पास ले जाएं। DHF और DSS बुखार में प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं , जिससे शरीर के जरूरी अंगों पर बुरा असर पड़ सकता है। डेंगू से कई बार मल्टि - ऑर्गन फेल्योर भी हो जाता है।

इन चार बातों को जरूर ध्यान रखें - 
1. बुखार है ( खासकर डेंगू के सीजन में ) तो एस्प्रिन ( Aspirin ) बिल्कुल न लें. यह माकेर्ट में डिस्प्रिन ( Dispirin ), एस्प्रिन ( Aspirin ), इकोस्प्रिन ( Ecosprin ) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। ब्रूफेन ( Brufen ), कॉम्बिफ्लेम ( Combiflame ) आदि एनॉलजेसिक से भी परहेज करें क्योंकि अगर डेंगू है तो इन दवाओं से प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं और शरीर से ब्लीडिंग शुरू हो सकती है. किसी भी तरह के बुखार में सबसे सेफ पैरासिटामोल लेना है.
2. झोलाछाप डॉक्टरों के पास न जाएं. अक्सर ऐसे डॉक्टर बिना सोचे - समझे कोई भी दवाई दे देते हैं. डेक्सामेथासोन ( Dexamethasone ) इंजेक्शन और टैब्लेट तो बिल्कुल न लें. अक्सर झोलाछाप डॉक्टर मरीजों को इसका इंजेक्शन और टैब्लेट दे देते हैं , जिससे मौत भी हो सकती है.
3. डेंगू बुखार के हर मरीज को प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं होती. आमतौर पर किसी सेहतमंद शख्स के शरीर में डेढ़ से दो लाख प्लेटलेट्स होते हैं. प्लेटलेट्स बॉडी की ब्लीडिंग रोकने का काम करती हैं. प्लेटलेट्स अगर एक लाख से कम हैं तो मरीज को फौरन हॉस्पिटल में भर्ती कराना चाहिए. डेंगू में 24 घंटे में 50 हजार से एक लाख तक प्लेटलेट्स तक गिर सकते हैं.अगर प्लेटलेट्स गिरकर 20 हजार या उससे नीचे पहुंच जाएं तो प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. 40-50 हजार प्लेटलेट्स तक ब्लीडिंग नहीं होती. ब्लीडिंग शुरू हो जाए तो प्लेटलेट्स चढ़वाने में देरी न करें.
4. डेंगू में कई बार चौथे - पांचवें दिन बुखार कम होता है तो लगता है कि मरीज ठीक हो रहा है , जबकि ऐसे में कई बार प्लेटलेट्स गिरने लगते हैं. बुखार कम होने के बाद भी एक - दो दिन में एक बार प्लेटलेट्स काउंट टेस्ट जरूर कराएं. डेंगू में मरीज के ब्लड प्रेशर , खासकर ऊपर और नीचे के बीपी के फर्क पर लगातार निगाह ( दिन में 3-4 बार ) रखना जरूरी है. दोनों बीपी के बीच का फर्क 20 डिग्री या उससे कम हो जाए तो स्थिति खतरनाक हो सकती है. बीपी गिरने से मरीज बेहोश हो सकता है.

बच्चों का रखें खास ख्याल

- बच्चे नाजुक होते हैं और उनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए बीमारी उन्हें जल्दी जकड़ लेती है. ऐसे में उनकी बीमारी को नजरअंदाज न करें.
- बच्चे खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए इन्फेक्शन होने और मच्छरों से काटे जाने का खतरा उनमें ज्यादा होता है.
- बच्चों घर से बाहर पूरे कपड़े पहनाकर भेजें. मच्छरों के मौसम में बच्चों को निकर व टी - शर्ट न पहनाएं। रात में मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं.
- अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो , लगातार सोए जा रहा हो , बेचैन हो , उसे तेज बुखार हो , शरीर पर रैशेज हों , उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं.
- आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ - पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट को छूकर और रेक्टल टेम्प्रेचर लेकर उनका बुखार चेक किया जाता है. बगल से तापमान लेना सही तरीका नहीं है , खासकर बच्चों में. अगर बगल से तापमान लेना ही है तो जो रीडिंग आए , उसमें 1 डिग्री जोड़ दें. उसे ही सही रीडिंग माना जाएगा.
- बच्चे को डेंगू हो तो उसे अस्पताल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें डीहाइड्रेशन ( पानी की कमी ) भी जल्दी होता है।

क्या खाएं , क्या नहीं?

- बुखार में मरीज का खाना बंद न करें। मरीज को लगातार पानी , तरल चीजें और सामान्य रूप से खाना देना जारी रखें. बुखार की हालत में शरीर को अच्छे और सेहतमंद खाने की जरूरत होती है.
- खाना ताजा और आसानी से पचने वाला हो। तेज बुखार से प्रोटीन को नुकसान होता है , इसलिए मरीज के खाने में प्रोटीन ( दालें , राजमा , दूध , अंडा , पनीर , मछली आदि ) जरूर हों , खासकर बच्चों के खाने में.
- मरीज को मौसमी फल और हरी सब्जियां खूब खिलाएं. विटामिन - सी से भरपूर चीजों ( आंवला , संतरा , मौसमी , टमाटर आदि ) लें। ये हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं.
- खाने में हल्दी का इस्तेमाल ज्यादा करें. सुबह आधा चम्मच हल्दी पानी के साथ या रात को आधा चम्मच हल्दी एक गिलास दूध या पानी के साथ लें। लेकिन अगर आपको नजला , जुकाम या कफ आदि है तो दूध न लें.तब आप हल्दी को पानी के साथ ले सकते हैं.
- बहुत ठंडा और बासी खाना न खाएं. बेहद तीखे , तले - भुने और गरिष्ठ खाने से भी परहेज करें.


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