गजेंद्र का परिवार किस हाल में है? उसकी बेटी कहां है?

उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के दादरी का बिसहाड़ा गांव इन दिनों ‘पिपली लाइव’ बना हुआ है. जिसे देखो वही मरहूम अखलाक के परिवार का हिमायती बनकर सियासी रोटी सेंक रहा है. अखलाक के साथ जो हुआ गलत हुआ. दोषियों को सजा मिलनी ही चाहिए, लेकिन गमगीन परिवार के बीच सियासी तमाशा ठीक नहीं, क्योंकि हमदर्द के लिबाज में आने वाले नेता चंद दिनों बाद यह भी भूल जाते हैं कि उन्होंने क्या वादे किए थे? साढ़े पांच महीने पहले दिल्ली में आप पार्टी की किसान रैली में फांसी लगाने वाले परिवार के साथ ऐसा हो चुका है. मदद की डींगे हांकने वाले नेता, सरकारें सब अपना वादा भूल चुकी हैं. पिता की मौत के बाद 10 लाख रुपए की मदद ठुकारने वाली मेघा कंवर आज अपनी कॉलेज की पढ़ाई जारी रखने के लिए संघर्ष के दौर से गुजर रही है. लेकिन आज किसी को काेई इल्म नहीं है कि गजेंद्र का परिवार किस हाल में है? मीडिया की सुर्खियों में आने वाली उसकी बेटी कहां है? हां, दादरी कांड ने इस परिवार के जख्म जरूर हरे कर दिए.


साढ़े पांच महीने बाद भी गजेंद्र की मौत बनी पहेली:
उल्लेखनीय है कि दिल्‍ली के जंतर-मंतर पर 22 अप्रेल को आम आदमी पार्टी की रैली में राजस्थान के एक परेशान किसान ने खुदकुशी कर ली थी. पेड़ पर फंदा लगाकर झूलने वाला गजेंद्र नाम का 45 वर्षीय यह किसान बेमौसम बारिश से बर्बाद हुई फसल से आहत था. हालांकि, गजेंद्र के परिजनों से ने उसकी खुदकुशी को साजिश बताया और उच्च स्तरीय जांच की मांग भी की. लेकिन आज तक पता नहीं चल सका है कि वह हादसा था या साजिश या खुदकुशी. गजेंद्र की बेटी मेघा ने अब भी अपने पिता की मौत की निष्पक्ष जांच की मांग पर अड़ी हैं.

अपने दम पर कॉलेज में दाखिला, लेकिन अब भी मदद की दरकार:
गजेंद्र की मौत के बाद दिल्ली की आप सरकार ने गजेंद्र के बेटे को सरकारी नौकरी, तीनों बच्चों की पढ़ाई जिम्मेदारी का वादा किया था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, 10 लाख रुपए की मदद ठुकराने वाली गजेंद्र की बेटी मेघा को कॉलेज की पढ़ाई में शुरू करने में ऐसा कोई वादा मददगार साबित नहीं हुआ जो गजेंद्र की मौत वक्त किया गया था. उसने अपने दम पर जयपुर के महारानी कॉलेज में दाखिला लिया. लेकिन उसे इस बात का मलाल आज भी है कि मौका परस्त नेताओं ने जो मदद के वादे किए थे वो आज सुध तक नहीं लेते. दरअसल, मेघा को आज भी मदद की दरकार है. कॉलेज में तो उसका एडमिशन हो गया लेकिन कॉलेज हॉस्टल में उसे जगह नहीं मिल पाई और पिछले दो महीने से वो रिश्तेदारों के यहां पनाह लिए हुए है.

गजेंद्र के दोनों बेटों को पढ़ा रहे हैं दादा:


गजेन्द्र गांव में पिता बने सिंह और मां के अलावा पत्नी और बच्चों के साथ रहते थे. गजेंद्र की बेटी अब जयपुर के महारानी कॉलेज में बीए(ऑनर्स) की पढ़ाई कर रही है. वहीं, दोनों बेटे धीरेंद्र और राघवेंद्र का दाखिला गांव से थोड़ी दूर बांदीकुई के एक प्राइवेट स्कूल में कराया गया है. गजेंद्र की मौत के समय बड़ा बेटा 13 साल का धीरेंद्र सातवीं में और 9 साल का छोटा बेटा राघवेंद्र तीसरी कक्षा में पढ़ रहा था. मेघा के अनुसार अब उसके साथ उसके दोनों भाइयों की पढ़ाई-लिखाई का सारा खर्च उनके पिता ही उठा रहे हैं.
यहां सुनें- महारानी कॉलेज की प्रिंसिपल क्या कहती हैं ?

(मेघा के अनुसार आम आदमी पार्टी ने कॉलेज में उसके दाखिले में कोई मदद नहीं की. उधर, मेघा के चाचा गोपाल सिंह जो गांव के सरपंच भी हैं अब भी आप सरकार का पक्ष लेते हुए कहते हैं कि 'आप' के संजय सिंह ने उन्हें हर संभव मदद का आश्वासन दिया है और वे ही मेघा के कॉलेज में एडमिशन से लेकर फीस और हॉस्टल तक का खर्चा वहन करेंगे. हालांकि, इस बारे में जब हमने महारानी कॉलेज की प्रिंसिपल विद्या जैन से बात की तो उन्होंने इस मामले में किसी भी पार्टी या सरकार के हस्तक्षेप से साफ इनकार कर दिया.)



(महारानी कॉलेज में एडमिशन के बाद कॉलेज के इसी गर्ल्स हॉस्टल में दाखिले के लिए मेघा जतन कर रही है. लेकिन यहां कुल 120 सीटें पहले से ही फुल हो चुकी हैं और अब उसे किसी प्राइवेट हॉस्टल की राह ही देखनी पड़ेगी.)



बेटे को सरकारी नौकरी और शहीद का दर्जा भी अधर में:
दिल्ली सरकार ने किसान मुआवजा कार्यक्रम का नाम 'गजेंद्र सिंह किसान सहायता योजना' रखा गया. इससे गजेंद्र के परिजनों को बेहद खुशी हुई लेकिन सरकार का गजेंद्र को शहीद का दर्जा और उसके बेटे को सरकारी नौकरी वाला फैसला आज भी अधर में लटका है. गजेंद्र के चाचा गोपाल सिंह कहते हैं कि किसान मुआवजा कार्यक्रम का नाम उनके नाम पर रखकर दिल्ली सरकार ने अच्छा कदम उठाया है और हमारी मांगें मानकर उन्होंने हमारी भावनाओं का सम्मान किया है. लेकिन अभी दिल्ली हाईकोर्ट में मामला अटका हुआ है. दरअसल, अदालत ने गत एक जुलाई को उस अर्जी पर दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है, जिसमें किसान को शहीद का दर्जा देने के निर्णय को यह कहते हुए चुनौती दी गई थी कि आत्महत्या एक अपराध है और उसका महिमामंडन नहीं किया जा सकता. मामले की अगली सुनवाई 14 अक्तूबर को होनी है.

न जांच हुई न दोषियों पर कार्रवाई:
गजेंद्र के परिवार ने उसकी मौत के बाद सरकार से चार मांगें रखी थी. 1. बारहवीं में पढ़ रही गजेंद्र की बेटी मेघा का दाखिला जयपुर के महारानी कॉलेज में कराया जाए. सरकार ही उसकी पढ़ाई और अन्य खर्च की जिम्मेदारी ले. 2. गजेंद्र के बड़े बेटे धीरेंद्र को वक्त आने पर सरकार की ओर से उसकी योग्यता के अनुसार नौकरी मुहैया कराए. 3. गजेंद्र की मौत के मामले की निष्पक्ष और जल्द से जल्द जांच हो. और 4.गजेंद्र के शव को स्थानीय थाने में हुए कथित दुर्व्यवहार के मामले में दोषियों पर कार्रवाई हो. गजेंद्र के चाचा गोपाल सिंह बताते हैं कि इनमें मांगों में से सरकार ने बेटे को सरकारी नौकरी देने की बात तो मान ली लेकिन गजेंद्र की मौत की न तो जांच हुई और न ही कथित दुर्व्यवहार के आरोपियों पर कार्रवाई.
यह है पूरा मामला:
22 अप्रेल 2015 बुधवार को आम आदमी पार्टी की रैली के दौरान राजस्थान के दौसा के रहने वाले किसान गजेंद्र सिंह ने पेड़ से फंदा लगा कर खुदकुशी कर ली थी. पुलिस और आप सरकार ने इसे हादसा करार दिया लेकिन परिजनों ने साजिश की आशंका जाहिर की. इस हादसे के बाद से ही राजनीतिक दलों के बीच बयानबाजी शुरू हो गई. घटना के बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल ने रैली जारी रखी और करीब 20 मिनट तक भाषण दिया जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर निशाना साधा. हालांकि, बाद में केजरीवाल ने मांगी माफी मांग ली. उन्होंने कहा कि किसान के पेड़ से लटकने के बाद भी रैली और भाषण जारी रखना उनकी गलती थी. किसान की मौत से उन्हें काफी दुख हुआ और वह उस रात सो नहीं पाए.

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