शराबबंदी पर राजनीति किसने की? कांग्रेस सरकार ने? गहलोत ने? या भाजपा ने?



हलोत ने विधान सभा चुनाव से पहले शराब बंदी के लिए छाबड़ा से जो समझौता किया था। नई बनी वसुन्धरा राजे की सरकार ने उस समझौते को तोड़ मरोड़ दिया। इसके चलते पांच महीने बाद ही छाबड़ा को 1 अप्रेल 2014 से अपना अनशन शुरु करना पड़ा। इस दिन से सरकार ने नई आबकारी नीति के तहत शराब की दुकानों के लाइसेंस के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे। एक तरह से यह सरकार और छाबड़ा में सीधी टकराव की शुरुआत थी। इस के चलते सरकार का छाबड़ा से अनशन के 45 वें दिन समझौता हुआ।
समझौते में पूर्व के समझौते की भावना के अनुरूप कार्रवाई करने का तय हुआ। वहीं, लोकायुक्त कानून को सशक्त और प्रभावी बनाने के लिए महाधिवक्ता नरपत मल लोढ़ा की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन करने पर सहमति बनी। इस समिति को एक वर्ष में यानी 15 मई 2015 तक अपनी रिपोर्ट सरकार को देनी थी। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। इस पर छाबड़ा ने 2 अक्टूबर से आमरण अनशन आरम्भ कर दिया।
सरकार की मंशा शुरु से ही आंदोलन को कुचलने की रही। पांचवे दिन तबीयत खराब होने पर छाबड़ा को एसएमएस अस्पताल में भर्ती कराया गया। तो उन्हें संक्रमित रोग स्वाइन फ्ल्यू के रोगियों के साथ रखा गया। कार्यकर्ताओं और परिजनों के विरोध के बाद उन्हें मेडिकल आईसीयू में भेजा गया, जहां पुलिस का कड़ा पहरा था। कार्यकर्ता - समर्थकों के मिलने पर सख्ती। संक्षिप्त बातचीत। अनशन समाप्त करने का दबाव। इस दमन चक्र के बावजूद इच्छा शक्ति के बल पर जल्दी ही छाबड़ा के स्वास्थ्य में सुधार हुआ।

                 चिकित्सकों की सलाह पर उन्हें पांच दिन बाद दुरस्त बताकर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। तो वे अपने समर्थकों के साथ फिर से शहीद स्मारक पर अनशन करने पहुंच गए। चार दिन बाद ही तबीयत खराब होने पर उन्हें फिर अस्पताल में भर्ती कर दिया गया। इस बार सरकार का रवैया बदला हुआ था, लेकिन, शरीर शिथिल हो गया था। मुंह से पानी पीना निरन्तर कम होता गया। वहीं चीनी-नमक के घोल वाले ड्रीप को चढ़ाने के लिए शरीर में नसों का मिलना दुभर होता गया। ऐसी स्थिति में चिकित्सकों ने दाई जांघ में सेन्ट्रल लाइन लगाने का तय किया। कुछ घंटों के बाद ही यह तरीका विफल हो गया। वहीं, इससे खून के थक्के फैलने से पैर में सूजन आ गई। इसके दो दिन बाद यानी 2 नवम्बर को वे कोमा में चले गए। अगले दिन भोर में करीब साढ़े चार बजे चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। (राजेन्द्र राज के साभार)

गहलोत की राजनीति केवल दिखावा?
स्व. छाबड़ा ने राज्य में शराबबंदी और लोकायुक्त को सशक्त बनाने के लिए गहलोत के कार्यकाल में दो बार अनशन किया था। गहलोत उस वक्त अगर मांगे मान लेते तो घटना ही नहीं होगी। तत्कालीन मुख्यमंत्री भेरोसिंह शेखावत की पहल पर प्रदेश में 1 अप्रेल, 1980 को पूर्ण शराबबंदी लागू हुई, लेकिन जैसे ही कांग्रेस की सरकार आई, मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया ने बजट भाषण 1981-82 में शराबबंदी हटाने के संकेत दे दिए। उसके बाद कांग्रेस की ही शिवचरण माथुर सरकार ने 11 अगस्त, 1981 को शराबबंदी के फैसले को पलटकर राजस्थान में शराब की बिक्री पर लगी पाबंदी हटा दी। तब गहलोत ने कांग्रेस सरकार के फैसले का विरोध क्यों नहीं किया? कांग्रेसराज में क्यों नहीं मानी छाबड़ा की बात?

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