क्या अपको पता है रेणुका माता मंदिर कहां हैं? जानिए, क्यों प्रसिद्ध है यह मंदिर?

आपको पता होगा परशुराम भगवान विष्णु के आवेशावतार थे. रेणुका देवी उन्हीं की माता थी. उनके पिता का नाम जमदग्नि था. परशुराम के चार बड़े भाई थे लेकिन गुणों में यह सबसे बढ़े-चढ़े थे. पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन हेतु गंगा तट पर जल लेने गई रेणुका आसक्त हो गयी और कुछ देर तक वहीं रुक गयीं। हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी. लेकिन मोहवश किसी ने ऐसा नहीं किया. तब मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई. अन्य भाइयों द्वारा ऐसा दुस्साहस न कर पाने पर पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का शिरोच्छेद कर दिया. यानी सिर धड़ से अलग कर दिया. यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा.
कहां हैं रेणुका माता का मंदिर?

(Renukaji is connected by road. It is 315 km from Delhi. The nearest rail head is at Ambala (95 km) Dehradun (105km) and Chandigarh (95 km). The nearest airports are at Chandigarh and Dehradun. Taxis/buses are available for Renukaji at all places.)

रेणुका तीर्थ स्थल जिला सिरमौर के मुख्यालय नाहन से मात्र 40 किलोमीटर तथा चण्डीगढ़ से क़रीब 95 किलोमीटर है. यहां सालाना भरने वाले मेले पर राजेंद्र तिवारी जी का आलेख पढ़ें- हिमाचल का रेणुका जी मेला



ये तीन वरदान मांगे?


1. माता पुनर्जीवित हो जाए
2. उन्हें मरने की स्मृति न रहे यानी कैसे मौत हुई यह बात याद न रहे और
3. भाई चेतना-युक्त हो जाएं यानी उनकी विचार शक्ति फिर से लौट आए.

रेणुका माता फिर जिंदा हो गई लेकिन?
परशुराम को वरदान मिलने के बाद माता रेणुका फिर से जिंदा हो गई. लेकिन परशुराम पर मातृहत्या का पाप चढ़ गया.

रेणुका माता के मंदिर के दर्शन यहां करें:वीडियो देखें-



कैसे मातृहत्या से मुक्त् हुए परशुराम?
राजस्थान के चितौड़ जिले में स्तिथ मातृकुण्डिया वह जगह है जहां परशुराम अपनी माँ की हत्या (वध) के पाप से मुक्त हुए थे. यहां पर उन्होंने शिव जी की तपस्या की थी और फिर शिवजी के कहे अनुसार मातृकुण्डिया के जल में स्नान करने से उनका पाप धूल गया. इस जगह को मेवाड़ का हरिद्वार भी कहा जाता है. यह स्थान महर्षि जमदगनी की तपोभूमि से लगभग 80 किलो मीटर दूर हैं.

मातृकुण्डिया से कुछ मील की दुरी पर ही परशुराम महदेव मंदिर स्तिथ है इसका निर्माण स्वंय परशुराम ने पहाड़ी को अपने फरसे से काट कर किया था. इसे मेवाड़ का अमरनाथ कहते है.

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