‘ग्रीष्मकालीन बाल नाट्य शिविर’ समापन समारोह

जयपुर। जवाहर कला केन्द्र, के रंगायन सभागार में आज पुनः 8 लघु नाटकों का मंचन किया गया। थीम बेस सभी नाटकांे की प्रस्तुति के साथ ही तीन दिवसीय बाल नाट्य समारोह का समापन हुआ।

इन लघु नाटकों का मंचन जवाहर कला केन्द्र द्वारा गत 13 मई से संचालित किये जा रहे एक माह के ''ग्रीष्मकालीन बाल नाट्य शिविर'' के समापन समारोह के तीसरे दिन किया गया। इनकी प्रस्तुति गत 15 एवं 16 जून, 2013 को केन्द्र के रंगायन सभागार में प्रतिदिन सायं 7 बजे की गई। तीन दिवसीय इस समारोह में थियेटर डिविजन के 8 से 20 वर्ष की आयु के 290 प्रशिक्षणार्थी आयु वर्ग के अनुसार बनाये गये ग्रुपों में लघु नाटकों का मंचन कर रहे थे।

चिर्री पिर्री ग्रुप के 28 नन्हें बाल प्रशिक्षणार्थियों ने प्रशिक्षक सुरूचि शर्मा, सक्षम खण्डेलवाल के मार्गदर्शन में बर्फ के गोले, बर्फ के दादाजी, तितलियों व वृक्ष आदि पात्रों के माध्यम से ''बर्फ के गोले'' नाटक में बताया कि प्रकृति सदा चुप रहती हैं पर क्या हो जब वो हमारी बोलती दुनिया में आ मिले। बच्चों ने प्रदूषण व घटती हरियाली के प्रति चिन्ता व्यक्त करते हम सचेत किया।

प्रशिक्षक यशेष पटेल, आयुषि दीक्षित के मार्गदर्शन में मस्त कलन्दर ग्रुप के 36 बच्चों ने ''हो जायेगी लाइफ शोर्ट'' प्रस्तुति में आज की इस भाग दौड़ की जिन्दगी में अपने शरीर अपने स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जा रही लापरवाही के लिए सचेत किया। यदि हम अपने बाॅडी पाट्र्स का ध्यान रखेंगें तो हमारे बाॅडी पाट्र्स शरीर का अंत तक ध्यान रखेंगें।

धीन्चेक धमाके ग्रुप के 34 बच्चों ने प्रस्तुति में प्रशिक्षक  अभिषेक मुद्गल, प्रीति दुबे के मार्गदर्शन में तैयार नाटक ''झलक दिखलाजा'' में बताया कि आधुनिक दुनिया में भी अधिकतर लोग अंध विश्वास से घिरे रहते हैं और अपनी इच्छांए और अपने सपने पूरे करने के लिए बिना सोचे समझे भेड़ चाल चलते है। ऐसे ही किस्सो पर आधारित नाटक में अंध विश्वास की भेड़चाल पर प्रहार किया।

नौटंकी नवाब ग्रुप के 38 प्रशिक्षणार्थियों ने अपने नाटक वेस्टम डस्टबीनम्  के माध्यम से कचरा, कचरा पात्र में ही डालने की सीख दी । प्रशिक्षक विशाल भट्ट, अंकुश कुलश्रेष्ठ के मार्ग दर्शन में यह प्रस्तुति दी गई।

सूतली बम ग्रुप के 44 बच्चों ने अपने नाटक ''टेक्नो मेकनो ह्यूमेन'' के माध्यम से दर्शाया कि आज आदमी टेक्नोलाॅजी पर बहुत अधिक निर्भर हो गया हैं। इसके चक्कर में हम अपनी परम्परा, संस्कृति को भूल रहे हैं। टेक्नोलाॅजी पर इतना निर्भर रहना कहां तक उचित है ? प्रशिक्षक राजूकुमार के मार्गदर्शन में यह मंचन किया गया।

सटकेले अटकेले ग्रुप के 28 बच्चों ने नाटक ''अधूरा नहीं अलग हूॅ मैं'' में दर्शाया कि लोगों ने  एक दूसरे की शारीरिक कमी को देख खुद को पूरा और उसे अधूरा कहने से नहीं चूकते। इस बुराई पर प्रहार करते हुए बच्चों ने दर्शको के सम्मुख प्रश्न रेखा कि क्या शारीरिक रूप से असक्षम होता ही अधूरा होता हैं ? अथवा हजारों बुराईयों की बैसाखियों के सहारे चलते हम... क्या पूरे हैं ? ग्रुप के प्रशिक्षक राहुल त्रिवेदी रहे।

अलबेला तबेला ग्रुप के 29 बच्चों ने ''गुड गोबर'' नाटक में बताया कि हताशा में हम अपनी खासियत भूल जाते है लेकिन ऐसे में अपनों की हौसला अफजाई मिल जाए तो अपने सफर में कामयाब हो जाते हैं। इनकी प्रशिक्षक रूचि भार्गव थी।

लल्लन टाॅप ग्रुप के सीनियर 35 बच्चो ने अपनी प्रशिक्षक बबीता मदान, पद्मजा शर्मा के मार्गदर्शन में मंचित इस ''और मैं ?'' प्रस्तुति में बताया कि महिलायें अपनो के लिए दुःख सहती रहती है। और कुुछ बोलती  नहीं । उसी का ही परिणाम है कि उनके साथ अत्याचार होते रहते हैं। उन्हें आगे बढ़कर अपने हौसले से मुकाबला करते हुए समाज को, दुनिया को बताना होगा कि वे सक्षम हैं।

इन आठ ग्रुपों के बच्चों द्वारा शिविर के दौरान नाट्य कला के सिखाये जा रहे गुर व अपने अनुभवों के संबंध में प्रति दिवस चित्रों, कविताओं, कार्टून आदि के माध्यम से आकर्षक न्यूज बूलेटिन भी जारी किये गये जिन्हें भी रंगायन सभागार के बाहर गैलेरी में दर्शाया गया है।
एक माह के इस शिविर में केन्द्र के कार्यक्रम अधिकारी (रंगमंच) व शिविर निर्देशक संदीप मदान के मार्गदर्शन में अनुभवी कलाकारों ने इन बच्चों को प्रशिक्षित किया। कार्यक्रम में प्रकाश-लोकेश राठौड़, यशेष ध्वनि-मुदित त्रिपाठी, अंकुश कुलश्रेष्ठ, मंच सहायक-रोहित, सुभाष, पप्पू रहें।

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