'जो करे जोकर-अशोक चक्रधर

जयपुर। मेरा मानना है कि साहित्य मनुष्य को समझ देता है, और समाजहित में सोचने का नजरिया भी। साहित्य हम में मनुष्यता का भाव पैदा करता है। मेरी साहित्य और हास्य में रुचि भी इस समझ के साथ बढ़ती गई और दिनों-दिन मैं इसमें डूबता गया। साहित्य हमारी विरासत है और नवविचारों के साथ क्रांति की पहल करने वाला सशक्त माध्यम भी। इसे समझने वालों की भी कोई कमी नहीं है। 

पहल पर उड़ती है, हंसी
लीक से हटकर काम करने वालों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पहल करने वाले हंसी का पात्र बनाए जाते हैं, चाहे उनकी पहल ने सफलता के कीर्तिमान ही क्यों न स्थापित कर लिए हो। मनुष्य की इसी पहल पर मेरी नई किताब 'जो करे जोकरÓ जल्द ही पब्लिश होने वाली है। इसमें मैंने पहल करने वाले की मनोदशा और समाज की प्रतिक्रिया पर चर्चा की है।
साहित्य का घाट
मैं इस लिट्रेचर फेस्टिवल में पहली बार आया हूं। लेकिन एक जगह पर इतने सारे कलाकार, साहित्यकार और लेखन से जुड़े लोग एकत्रित हुए हैंं, वाकई अद्ïभुत है। देश-विदेश के विचारकों से यहां मिलना-बात करना साहित्य के लिए बेहद सुखद है। ये फेस्टिवल 'साहित्य का घाटÓ है, यहां की हर बात निराली है।

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