कौन कहता है बिहार चुनाव के बाद गाय का मुद्दा खत्म हो गया?

कौन कहता है बिहार चुनाव के बाद दादरी की घटना किसी को याद नहीं है? कौन कहता है गाय का मुद्दा अब खत्म हो गया है? गाय सिर्फ चुनाव में वोट बंटोरने के काम नहीं आई, लोगों को बरगलाने तक ही इस पर बयानबाजी नहीं हुई, लोगों का ध्यान आकर्षित करने और सुर्खियों में रहने के लिए इसकी बलि अब भी जारी है. और ये बली कोई और नहीं असहिष्णुता/सहिष्णुता पर अवॉर्ड लौटाने वाली कथित कलाकारों की जमात ले रही है.
मैं बात कर रहा हूं कला के नाम पर धार्मिक आस्था और आस्था पर कुंठाराघात करने वाली इस घटना की जिसमें 'गाय' को 200 मीटर ऊपर सूली पर चढ़ा दिया गया. भले ही यह गाय असल में एक डमी थी लेकिन इसकी प्रतिकृति इसके असल होने का भम्र पैदा कर रही थी. ये भम्र वैसा ही था जैसा दादरी के मरहूम अखलाक के घर में बीफ पकाने को लेकर हुआ था.
शर्मनाक था दादरी कांड, शर्मनाक था बिहार में गाय को मुद्दा बनाना और शर्मनाक है आर्ट के नाम पर आसमान में आस्था को सूली पर चढ़ाना. ये तमाशा बंद होना चाहिए लोकप्रियता के लिए ये तरीका ठीक नहीं है. ऐसी कला कलाकारों की अवॉर्ड वापसी पर सवालिया निशान है! स्टॉप इट!


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